नशा

नशा क्या है

किसी भी चीज की ऐसी अनियंत्रित आदत जो जीवन को अस्त व्यस्त कर दे, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ को कमजोर कर दे नशा या व्यसन कहलाता है। नशा इच्छाशक्ति से नियंत्रित न होकर इच्छाशक्ति को ही नियंत्रित करने लगता है। एक तरह से देखा जाए तो व्यक्ति अपने द्वारा बुलाए हुए नशे का ही गुलाम बन जाता है और इसके दुष्प्रभाव को जानते हुए भी उसके बताए रास्ते पर चलता जाता है।

क्या करें

अपने लिए रोज कोई फुर्सत का समय निकलने और शांति से बैठकर अपनी अंतरात्मा की आवाज सुने की वह आपके इस नशे के बारे में क्या कहती है?

खुद से पूछें

क्या इतनी सारी बुद्धिमत्ता, गुणों, क्षमताओं और शिक्षाओं के मिलने के बाद भी इस संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी किसी ऐसी चीज का गुलाम होकर बैठ जाए जो उसे कमजोर करे, क्या ये उसे और उसके पौरुष को शोभा देता ह

नशे की रणनीति को समझें

पतन का मार्ग हमेशा ही आसान और कई बार तो आकर्षक भी होता है। जैसे जैसे व्यक्ति इस रास्ते पर कदम रखता है ये भावनाएं उस पर कब हावी हो जाती हैं पता भी नहीं चलता। फिर नशे की भावनाएं एक तरह से उस व्यक्ति को ब्लैकमेल करती हैं कि बस इस बार हमारी बात मान लो लेकिन उनको दोहराने से वे और मजबूत होकर फिर से ब्लैकमेल करने आ जाती हैं और यह कहकर उसके संकल्प को कमजोर करती हैं कि पिछली बार तो तुम ही हमारे साथ थे। इस तरह उसका चक्र चलता रहता है। व्यक्ति उस कार्य की शुरुआत तो उसे भोग लेने के लिए करता है पर स्वयं ही शिकार हो जाता है, इसी को स्पष्ट करते हुए भृतहरि ने वैराग्यशतकम में कहा है : भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता। भोगवादीयों, प्रकृतिशोषकों, परिग्रहियों रूप मनमौजीयों (जो स्वार्थवश मन तरंग से भोग-उपभोग करते है) के लिये इससे श्रेष्ठ क्या उदाहरण होगा।

इस चक्र से मुक्ति का एक ही उपाय है जब भी इसमें फंसने का बोध हो, उसका साथ देने को नकार देना, उसका दोहराव ही उसका पोषण है और उनको नकार देना ही उनका अंत।