लोकसेवकों के लिए दिशा निर्देश

दुनियां बदलने की पहली शुरुआत स्वयं से करना ही पहला कदम है।

सेवा कार्य करते हुए बहुत बार अभिमान का भाव उत्पन्न हो जाता है तब अपनी ग्लतियों को स्मरण कर लेना चाहिए।

एक अच्छा कार्यकर्ता वह है जहां कार्य ही दिखाई दे कार्यकर्ता नहीं।

धैर्य

बुद्ध के संघ का विस्तार हो रहा था। उनसे प्रशिक्षित होकर बहुत सारे भिक्षु धर्म प्रचार करने निकल पड़े थे। सूना प्रांत ऐसा कठोर स्थान था कि वहां जाने को कोई भिक्षु तैयार ही न हो। एक दिन उनके शिष्य पूर्ण ने निवेदन किया कि वह धर्म प्रचार के लिए सूना प्रांत जाने की अनुमति चाहता है। बुद्ध ने सोचा कि यह भिक्षु इतना पढ़ा-लिखा भी नहीं है, फुर्तीला भी नहीं है। नई जगह कैसे कामयाब होगा/ इसी सोच के साथ बुद्ध ने भिक्षु पूर्ण से कहा, ‘वहां के लोग बहुत कठोर हैं, तुम्हारी निंदा करेंगे, अभद्र व्यवहार करेंगे। क्या तुम सह लोगे/’

भिक्षु ने कहा, ‘मैं समझूंगा कि निंदा ही तो कर रहे हैं। थप्पड़ तो नहीं मार रहे हैं।’ बुद्ध ने पूछा, ‘अगर वे तुम्हें थप्पड़ मारें तब/’ भिक्षु बोला, ‘मैं सोच लूंगा कि पत्थर और डंडों से तो नहीं मार रहे।’ परीक्षा हेतु बुद्ध ने फिर पूछा, ‘मान लो डंडे और पत्थर भी मारें तो/’ भिक्षु ने कहा, ‘फिर मानूंगा कि मुझे कम से कम तीर-तलवार से तो नहीं मार रहे हैं।’ बुद्ध ने फिर पूछा, ‘और अगर तीर-तलवार से मारें तब/’ भिक्षु बोला, ‘मुझे घायल ही तो कर रहे हैं जान से तो नहीं मार रहे।’

अंत में बुद्ध ने सीधा प्रश्न किया, ‘अगर तुम्हें जान से ही मार दिया तो/’ तब भिक्षु नतमस्तक होकर बोला, ‘हे तथागत, मरने से पूर्व मैं उनका उपकार मानूंगा। क्योंकि आपके पास रहकर मैंने इतना तो जाना ही है कि यह संसार दुख है, शरीर रोगों का घर है और मुझे इससे छुड़ा कर वे मेरा उपकार ही कर रहे हैं।’ बुद्ध जान गए कि यह भिक्षु असीम धैर्य का धनी है। क्रोध का शिकार नहीं होगा। यह सच्चा भिक्षु है। भिक्षु के लिए कड़वे वचनों को सुनना और प्रहारों को सहना सबसे बड़ी तपस्या है। आशीर्वाद देकर उन्होंने उसे जाने की अनुमति दे दी।.